साहित्य संवाद: सामाजिक सौहार्द का प्रतीक है मेलेः चन्द्रभान बिश्नोई

 साहित्य संवाद: सामाजिक सौहार्द का प्रतीक है मेलेः चन्द्रभान बिश्नोई

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बिश्नोई न्यूज़ डेस्क बीकानेर। जाम्भाणी साहित्य अकादमी द्वारा सोशल मीडिया पर आयोजित कार्यक्रम जाम्भाणी साहित्य संवाद श्रृंखला के चौवालीसवें एपिसोड में रविवार को मुख्य वक्ता के रूप में युवा उद्घोषक व शिक्षक चन्द्रभान बिश्नोई ने भाग लिया।

 चन्द्रभान बिश्नोई ने अपने उद्बोधन में कहा कि मेले भारतीय संस्कृति में अनादिकाल से चले आ रहे हैं। कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा अद्वितीय मेला है, मेलों का अपना एक सांस्कृतिक महत्व होता है। मुख्य जाम्भाणी मेले और उनका संक्षिप्त इतिहास बताते हुए उन्होंने मुकाम, जाम्भा, खेजड़ली, रामड्रावास, लालासर साथरी, जांगलू, लोहावट, रोटू, सोनंडी, लोदीपुर, खातेगांव, नीमगांव, गाडरवाड़ा, जन्माष्टमी मेला-पीपासर, हिसार, मेहराणा धोरा, धर्म स्थापनां मेला- समराथल, दिल्ली, अबोहर आदि का जिक्र किया।

जाम्भाणी मेलों के महत्व के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा की मेले का मतलब है मिलना, मेल-मिलाप करना। देश में दूर-दूर तक फैले हुए समाज को आपस में जोड़कर रखने में ये मैले महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। पहले के जमाने में जब आवागमन के साधनों का अभाव था तो सगे-संबंधियों के सुख दुःख के समाचार मिलने में ही महीनों और वर्ष लग जाते थे तब ये मेले ही संदेशों के आदान-प्रदान का जरिया होते थे। इन मेलों में धार्मिक सम्मेलन होते जहाँ लोग साधु- संतों से धर्म का मर्म समझते और अपने जीवन में जाने-अनजाने में आई बुराइयों को त्याग कर दृढ़ता से धर्म के पथ पर चलने का संकल्प लेते थे हालाँकि अब मेलों का स्वरूप बदल गया है। आवागमन के साधनों की भरमार है। मित्र, भाई-बंधुओं के समाचार पल-पल में फोन पर मिलते रहते हैं पर एक चीज उसी प्रकार बरकरार है वह है। मेले का चाव और भगवान श्री जाम्भोजी के प्रति भाव हालाँकि जमाने के जोर से लोगों के आपसी संबंधों में आत्मियता घटी और औपचारिकता बढ़ी है फिर भी लोग मेल-मिलाप को अहमियत देते हैं। उसी प्रकार बाजार सजते हैं और लोग खरीददारी करते हैं, कुछ हस्तशिल्प की वस्तुएँ तो शहरों में नहीं मिलती जो इन मेलों में मिल जाती है। धार्मिक-सामाजिक सम्मेलन होते हैं जहाँ लोग वक्ताओं को बड़े ध्यान सुनते हैं। साधु-संतों की साप्ताहिक कथाएँ चलती है विभिन्न प्रकाशक अपनी पुस्तकों और पत्रिकाओं की स्टॉल लगाते है। विशाल हवन-कुंडों में प्रज्जवलित अग्नि की आसमान को छूती धूम्र-ध्वजा मेले को अलौकिकता प्रदान करती है ध्वल वस्त्र और टोपी पहने सेवक दल के अनुशासित सेवक बन्धु यात्रियों के भोजन और मेले की अन्य व्यवस्थाओं को इतने सुचारु रूप से चलाते हैं।

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