गुरु जांभोजी की वाणी ने महिलाओं के आत्मसम्मान को जगाया - डॉ मधु बिश्नोई
बिश्नोई न्यूज़ डेस्क, बीकानेर। जाम्भाणी साहित्य अकादमी बीकानेर द्वारा सोशल मीडिया पर आयोजित कार्यक्रम 'जाम्भाणी साहित्य संवाद श्रृंखला' के 41 एपिसोड सफलता पूर्वक आयोजित कर चुकी है। 41वें साहित्य संवाद श्रृंखला में रविवार को मुख्य वक्ता के रूप में जाम्भाणी कथा वाचिका डॉ मधु बिश्नोई ने भाग लिया।
डॉ मधु बिश्नोई ने अपने उद्बोधन में कहा की गुरु जांभोजी ने 29 नियम की आचार संहिता बनाते समय सबसे पहले महिलाओं के स्वास्थ्य का ध्यान रखा। तीस दिन तक सूतक में नवजात शिशु की मां को पूरा आराम मिलता है और पोष्टिक आहार लेने से शिशु और मां दोनों का शरीर पुष्ट होता है। पांच दिन ऋतुवंती काल में स्त्री को विश्राम देने का नियम बनाया है। एक स्वस्थ मां ही एक स्वस्थ संतान को जन्म दे सकती है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। स्वस्थ मन ही स्वस्थ चिंतन करता है तथा स्वस्थ चिंतन ही स्वस्थ, सफल व सबल और समर्थ समाज का निर्माण करता है।
वैदिक काल में भारत में महिलाओं का बहुत सम्मान था परन्तु भारत पर विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण के बाद विदेशी संस्कृति के फैलाव ने महिलाओं की हालत बिगाड़ दी। उसे एक वस्तु मान लिया गया। सदियों बाद पंद्रहवीं शताब्दी में गुरु जांभोजी ने महिलाओं की सुध ली और उनके आत्मविश्वास का पुनर्जागरण किया। महिलाओं को पुरुषों के बराबर हवन आदि करने का अधिकार दिया। यह उसी का सुफल है आज लाखों बिश्नोई घरों में जो हवन होता है वह अधिकांश घर की महिलाओं द्वारा संचालित किया जाता है। महिलाओं का शिक्षित होना बहुत जरूरी है। परन्तु शिक्षा के साथ संस्कार उससे भी ज्यादा जरूरी है। पुत्र तो एक कुल को प्रकाशित करता है परन्तु सुसंस्कारी और शिक्षित पुत्री दो कुलों को उज्जवल करती है इसलिए उसकी दोगुनी महिमा है। आजकल के समय में सोशल मीडिया और अन्य साधनों के दुरूपयोग से हमारा युवा पथभ्रष्ट हो रहा है इसके लिए मां बाप को बहुत सावचेत रहने की आवश्यकता है। बच्चियों के लिए खासकर मां की सावधानी बहुत जरूरी है। गांवों की प्रतिभावान परंतु आर्थिक रूप से असमर्थ बालिकाओं की शहरों में उच्च शिक्षा, कॉचिंग क्लासेज़ और आवास की व्यवस्था समाज को करनी चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता राजकीय महाविद्यालय बावड़ी, जोधपुर में सहायक प्रोफेसर डॉ पुष्पा विश्नोई ने की। डॉ पुष्पा ने कहा की गुरु जांभोजी ने महिला और पुरुष को समान स्तर प्रदान किया है। उनकी वाणी और उनके हजूरी शिष्यों और परवर्ती जाम्भाणी संत कवियों के साहित्य में कहीं भी स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव दृष्टिगोचर नहीं होता। यह बिश्नोई पंथ की विलक्षण परंपरा का ही प्रभाव है कि इस समाज की महिलाओं में भरपूर आत्मसम्मान है। इसी के परिणामस्वरूप विश्व के अद्वितीय खेजड़ली महाबलिदान का नेतृत्व एक महिला अमृतादेवी बिश्नोई ने किया था तथा इससे पूर्व भी कर्मा और गौरां नाम की दो बिश्नोई बालिकाओं ने वृक्षों के रक्षार्थ बलिदान देकर यह साबित कर दिया था की महिलाएं करूणा, दया और ममता के साथ-साथ साहस और स्वाभिमान की भी प्रतिमूर्ति है।
गुरु जांभोजी ने अपनी वाणी में सीता, कुंती, तारादे, देवकी आदि आदर्श नारियों का नामोल्लेख करते हुए उनके जीवन से शिक्षा ग्रहण करने की प्ररेणा दी। उन्होंने रोटू गांव में जाकर नौरंगी का भात(मायरा) भरकर उसका मान रखा। जाम्भाणी पंथ पर उत्तम प्रकार से चलने वाले गुरु जांभोजी के प्रमुख हजूरी पैंतीस पुरुष शिष्यों की मंडली को 'पैंतीस की पुन्ह' कहा जाता था। वहीं उनकी सत्ताइस प्रमुख शिष्याओं की मंडली को 'सत्ताइस लुगाइयों की पुन्ह' कहा जाता था। यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है की किस प्रकार महिलाओं को गुरु जांभोजी की हजूरी में समराथल पर पुरूषों के बराबर सम्मान पूर्वक आसन मिलता था। उस काल को हम मारवाड़ में महिलाओं के पुनर्जागरण का काल कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हिरण के बच्चे को अपने आंचल का दूध पिलाकर अपने बच्चे की तरह पालने वाली मां बिश्नोई समाज के सिवाय विश्व में और कहां मिलेगी। यह गुरु जांभोजी की वाणी का ही प्रताप है की विश्व अचम्भित होकर आज इसकी परम्परा को निहार रहा है।
अकादमी की सदस्या और शोधार्थी श्रीमती उषा गोदारा वापी, गुजरात ने सबका आभार प्रकट किया। सत्र संयोजक विनोद जम्भदास तकनीकी प्रबंधक एडवोकेट संदीप धारणिया और संचालक अनिल कुमार धारणिया रहे। सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों से सीधे प्रसारित इस कार्यक्रम को हजारों लोगों ने देखा।
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