बिश्नोई समाज की स्वाधीनता आंदोलन में भूमिका : डॉ राजाराम अग्रवाल

 

 बिश्नोई समाज ने बलिदान परम्परा को कायम रखते हुए स्वाधीनता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई - डॉ  राजाराम अग्रवाल

बिश्नोई समाज ने बलिदान परम्परा कायम रखते हुए स्वाधीनता आंदोलन में महत्ती भूमिका निभाई - डॉ राजाराम अग्रवाल


बिश्नोई न्यूज़ डेस्क, बीकानेर। जाम्भाणी साहित्य अकादमी बीकानेर द्वारा सोशल मीडिया पर आयोजित जाम्भाणी साहित्य संवाद श्रंखला की 42 वीं कड़ी में मुख्य वक्ता के तौर पर फतेहाबाद हरियाणा से डॉ राजाराम अग्रवाल ने स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में जाम्भाणी साहित्य में उपलब्ध चेतना पर अपने विचार व्यक्त किए । डॉ अग्रवाल ने बताया कि जाम्भाणी साहित्य का मूल आधार व्यक्ति की चेतना है और चेतना ही स्वतंत्रता की मूलभूत आवश्यकता  है । स्वतंत्रता संग्राम से पूर्व ही जब मानव समाज अवैज्ञानिक धार्मिक मान्यताओं व शोषण पर आधारित रूढ़ियों का शिकार था तब भक्ति आंदोलन के पुरोधा गुरु जम्भेश्वर भगवान ने मुक्ति का मूलमंत्र देते हुए मानव समाज को शोषण के विरुद्ध खड़े होने की चेतना का प्रसार किया । जाम्भाणी चेतना का विस्तार केवल मानव की गुलामी से मुक्ति नहीं बल्कि धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक झंडाबरदारों से मुक्ति है जिससे समतामूलक समाज की स्थापना हो सके । समय समय पर जाम्भाणी अनुयायियों ने मानव, जीव व पर्यावरण पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की व निज का बलिदान देकर मूल्यों की रक्षा की ।

जाम्भाणी महान संत कवि साहबराम जी राहड़ ने अपनी अमूल्य रचना जम्भसार में 1857 के गदर का आंखों देखा वर्णन किया है । सन्त साहबराम जी तत्कालीन समाज की दशा व अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों का सजीव चित्रण किया है। सन्त साहबराम जी 1857 के गदर का मूल कारण चर्बी लगे कारतूस का इस्तेमाल बताया है जिससे उक्त कथानक की ऐतिहासिक दृष्टि से भी संपुष्टि होती हैं । बिश्नोई समाज ने ऐसे समय में सर्व समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर विप्लव में भाग लिया और स्वाधीनता आंदोलन की मजबूत नीवं डालने का कार्य किया । बिश्नोई समाज ने गुरु जम्भेश्वर भगवान के बताए गए मुक्ति के सिद्धांतों का मन ,वचन और कर्म से पालन किया और ना केवल भारत भूमि का विदेशी शासन से बचाव किया बल्कि स्वाधीनता आंदोलन में नवीन ऊर्जा का संचार किया । सन्त साहबराम जी राहड़ जगह जगह पर कथाओं व संगोष्ठियों का आयोजन करते थे जिससे मुक्ति की चेतना का व्यापक विस्तार भी हुआ । अंधविश्वास का विरोध भी बिश्नोई समाज का मूल आधार है जो मानव को शोषण के विरुद्ध खड़े होने व धार्मिक जड़ता से मुक्त होने का आधार प्रदान करता है और यदि इस आध्यात्मिक यात्रा को धार्मिक स्वतंत्रता का सूत्रपात कहा जाए तो गलत नहीं होगा । सन्त साहबराम जी राहड़ ने अपनी अद्भुत नेतृत्व क्षमता के बल पर गुरु जम्भेश्वर भगवान के सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए बिश्नोई समाज ने उस सत्ता को ना केवल फटकार लगाई अपितु एक सशक्त लड़ाई भी लड़ी जिसका चाहे तात्कालिक फायदा प्राप्त नहीं हुआ हो लेकिन उसी चेतना की अंतिम परिणीति आजादी के रूप में हुई । इसी चेतना के संदर्भ में संत साहबराम जी राहड़ ने सीसवाल गांव के तारो जी का वर्णन करते हैं जो एक अंग्रेज अधिकारी को इसलिए पीटते है क्योंकि वह एक हिरन का शिकार करने आता है । 

इसी क्रम में डॉ राजाराम जी अग्रवाल ने अपनी पैतृक भुमि के अद्भुत योद्धा जोराराम सहारण के बारे में विस्तार से बताया । बिश्नोई समाज ने सदा ही सामन्तशाही का विरोध किया और अवांछित करों का विरोध करने की एक लंबी परम्परा रही है और उसी परम्परा में जोराराम जी सहारण ने अंग्रेजों के हिमायती शेखुपुर के जागीरदार सुंदे खां का ना केवल विरोध किया अपितु ऐसे दुर्दांत व्यक्ति को मारकर असंख्य मानव समाज व जीवों को शोषण से मुक्ति दिलाई । जोराराम सहारण के उक्त कृत्य की वजह से अंग्रेजी सरकार ने उन्हें फांसी की सजा दी लेकिन  लार्ड लिनलिथगो की व्यक्तिक रुचि  की वजह से उनकी सजा 20 वर्ष की सजा में बदल गई  । द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजी सरकार की तरफ से भाग लेने पर उनकी सजा माफ हो गई।  मुकदमे की सुनवाई के दौरान लोग जोराराम जी को केवल देखने के लिए ही आते थे । जोराराम सहारण के ऐसे अद्भुत कार्य को तात्कालिक अनेक कवियों व साहित्यकारों ने अपनी रचना में वर्णन किया । डॉ अग्रवाल जी बताया कि इस प्रकार के बिश्नोई चरित्रों ने समाज में जुल्म और शोषण के विरुद्ध खड़े होने का संदेश दिया । डॉ अग्रवाल ने बताया कि इस दिशा में अभी व्यापक शोध की आवश्यकता है जिससे स्वाधीनता आंदोलन में मुख्य भूमिका में रहे जाम्भाणी लोगों से समाज का परिचय हो सके । 

संवाद श्रंखला की अध्यक्षता अकादमी उपाध्यक्ष डॉ कृष्णलाल बिश्नोई ने की । डॉ बिश्नोई ने बताया कि स्वाधीनता आंदोलन का जाम्भाणी साहित्य में बहुत व्यापक विस्तार है और यह एक विस्तृत विषय है जिसका अध्ययन विभिन्न गजेटियर व ऐतिहासिक स्त्रोतों के संदर्भ में किया जाना चाहिए । धन्यवाद अभिभाषण अकादमी के अध्यक्ष स्वामी कृष्णानन्द आचार्य ने किया व स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में ऐसे आयोजन में भाग लेने पर सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया । कार्यक्रम का संचालन सांचौर से श्री कुलदीप जी डावल ने किया व तकनीकी संचालन एडवोकेट संदीप धारणियां ने किया । अकादमी के प्रवक्ता श्री विनोद जम्भदास ने बताया कि आगामी जाम्भाणी साहित्य संवाद श्रंखला का आयोजन 5 सितंबर को किया जाएगा ।

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