International Forest Day 2024 | थार के मरुस्थल में वन संरक्षण की सुदीर्घ योजना के प्रतिपादक : गुरु जाम्भोजी

International Forest Day 2024

 थार के मरुस्थल में वन संरक्षण की सुदीर्घ योजना के प्रतिपादक : गुरु जांभोजी

International Forest Day 2024 | थार के मरुस्थल में वन संरक्षण की सुदीर्घ योजना के प्रतिपादक : गुरु जाम्भोजी


निवण प्रणाम साथियों,

आज अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस है, 21 मार्च को दुनिया भर में मनाया जाता है ये दिन, आइए हम इस लेख के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीयता वन दिवस व गुरु जांभोजी की सुदीर्घ योजना "थार के मरुस्थल में वन संरक्षण" के बारे में जाने।


वनों का संरक्षण हमारे लिए बेहद जरूरी है। वनों के बिना हम मानव जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। लोगों को इसके संरक्षण के लिए जागरूक करने के लिए 21 मार्च को विश्व भर में ‘अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस’ (International Day of Forests) के तौर पर मनाया जाता हैै। 28 नवंबर 2012 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रतिवर्ष 21 मार्च को अंतरराष्ट्रीय वन दिवस के रूप में मनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। इस वर्ष इसकी थीम ‘वन और नवाचार: बेहतर दुनिया के लिए नए समाधान’ है। अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस की इस थीम का यह भी अर्थ है कि पृथ्वी पर संभव सारा जीवन किसी न किसी तरह वनों के अस्तित्व से संबंधित हैै।

बीते कुछ वर्षों से जिस प्रकार बिना सोचे-समझे वनों की कटाई की जा रही है, उसे देखते हुए इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि जल्द ही हमें इसके भयावह परिणाम देखने को मिल सकते हैं। ऐसे में 21 मार्च का ये दिन बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इस दिन विश्व भर में वनों और पेड़ों से संबंधित गतिविधियों का आयोजन करने के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को प्रोत्साहित किया जाता है।

साथियों बात करें वन संरक्षण की तो मध्य सदी के महान संत गुरु जाम्भोजी का नाम हर जुबान पर आना स्वाभाविक है। गुरु जांभोजी ने राजस्थान के विषम भौगोलिक क्षेत्र थार के मरुस्थल में वन संपदा के संरक्षण की एक सुधीर गई योजना की शुरुआत संवत् 1542 में बिश्नोई विचारधारा के रूप में की।

गुरु जांभोजी ने बिश्नोई विचारधारा के मूल आधार 29 नियम में वन व वन्य जीव संरक्षण संबंधी महत्वपूर्ण नियम बनाए। यथा : "जीव दया पालनी, रूंख लीलो नी घावे।" वहीं गुरु महाराज ने कहा "हरि कंकेड़ी मंडप मेडी जहां हमारा वासा"। आपको बता दें कि गुरु जाम्भोजी ने स्वयं नौरंगी बाई को भात भरते वक्त रोटू ग्राम में खेजड़ियों का बाग लगाया।  

जाने रोटू धाम के बारे में जहां गुरु जांभोजी ने नौरंगी बाई को भात भरा

गुरु जाम्भोजी ने अपने परम संदेश से वन संरक्षण की सुदीर्ध योजना को बिश्नोईयों की मनोवृति से जोड़ा। अपने गुरु के प्रति अनंत श्रद्धा रखते हुए बिश्नोईयों ने समय-समय पर वृक्षों को बचाने के लिए अपने शिर्ष मस्तक अर्पित किए। भौगोलिक विषमताओं के उपरांत भी प्रकृति के वास्तविक स्वरूप को सुशोभित करते पेड़ पौधे व वन्यजीवों को निहारना हो तो आपको राजस्थान में थार के मरुस्थल में बसे बिश्नोईयों के गांवों का भ्रमण करना चाहिए। 

  अमृता देवी बिश्नोई की अगुवाई में संवत् 1787 में खेजड़ली में वृक्ष बचाओ आंदोलन में पेड़ों से लिपट कर 363 बिश्नोई पुरुष व स्त्रियों ने अपने प्राण अर्पित कर असंख्य वृक्षों को कटने से बचाया। 

हमें गर्व है कि खेजड़ली आंदोलन में प्राण आहुति देकर हमारे पूर्वजों ने वृक्ष बचाए। आइए आज विश्व वानिकी दिवस के अवसर पर अपने पूर्वजों की प्रेरक परंपरा का निर्वहन करने का संकल्प लेकर वृक्षारोपण करें एवं उनका संरक्षण करें।





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