IAS Pari Bishnoi : संस्कारों से व्यक्तित्व का निर्माण होता है, संस्कार शिविर में 750 प्रतिभागियों में भाग लिया

 IAS Pari Bishnoi : संस्कारों से व्यक्तित्व का निर्माण होता है, संस्कार शिविर में 750 प्रतिभागियों में भाग लिया

IAS Pari Bishnoi : संस्कारों से व्यक्तित्व का निर्माण होता है, संस्कार शिविर में 750 प्रतिभागियों में भाग लिया


बिश्नोइज्म न्यूज़ डेस्क, बिकानेर। जाम्भाणी साहित्य अकादमी द्वारा पांच दिवसीय राष्ट्रीय संस्कार शिविर के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए नव चयनित IAS Pari Bishnoi ने कहा कि संस्कार व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करता है। जिसका व्यक्ति जीवन भर अपने जीवन में अनुसरण करता है। अपना जीवन सफलता के क्षेत्र में शिखर को छूने का जज्बा होता है।

जाम्भाणी साहित्य अकादमी के मीडिया सह संयोजक मोहनलाल खिलेरी ने बताया कि जांभाणी साहित्य अकादमी द्वारा पांच दिवसीय द्वितीय ऑनलाइन संस्कार शिविर के उदघाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए नव चयनित IAS Pari Bishnoi ने कहा कि संस्कारवान व्यक्ति समाज और देश का नाम रोशन करता है और जीवन में सफल होता है। संस्कार व्यक्ति के व्यक्तित्व का दर्पण होता है। व्यक्तित्व में ही संस्कार दिख जाते हैं। ऐसे परिवार में जन्म लेने के परिवार में संस्कार स्पष्ट रूप से झलकता हुआ नजर आएगा। मेहनत के साथ में संस्कार होंगे तो सफलता अवश्य मिलती है। बिना संस्कार शिक्षा अधूरी रहती है। जिससे जीवन में व्यक्ति सफल भी नहीं होता है। साथ ही साथ ही अपने जीवन का प्रभाव नहीं डाल पाता है। 

IAS Pari Bishnoi कहा कि जीवन में मित्र अवश्य रखें लेकिन उनके संस्कारों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। संस्कारवान व्यक्ति से ही मित्रता करें। जिससे आप अपने जीवन के लक्ष्य से भटक न पाए क्योंकि व्यक्ति के जीवन में मित्रता का बहुत बड़ा महत्व है। जो व्यक्ति को सफलता और असफलता दोनों मार्गों की ओर ले जा सकता है। इसलिए संस्कारवान व्यक्ति से ही मित्रता और संगति रखनी चाहिए। 

उद्घाटन सत्र में जाम्भाणी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष आचार्य स्वामी कृष्णानंद ऋषिकेश ने कहा कि यह आयु व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण की सबसे महत्वपूर्ण समय होता है। 12 वर्ष से 17 वर्ष की आयु जो व्यक्ति के जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ पर होती है। जिसमें व्यक्ति

जीवन में क्या बनना चाहता है। क्या बनेगा इसके लिए उसकी भूमिका तैयार हो जाती है। इसलिए इस आयु में व्यक्ति को अच्छी है। और संस्कार होना अति आवश्यक है।

संस्कार शिविर के प्रथम दिन के प्रथम सत्र में शिविर के संयोजक समाज सचेतक आचार्य सच्चिदानंद लालासर ने कहा कि भगवान जांभोजी ने इस धरा धाम पर अवतार लेकर जीवन जीने की युक्ति

जब तक जीये सुख पूर्वक जीये जब इस संसार से जाए तो मुक्ति मिले का मार्ग दिया था।

उसका अनुसरण करते हुए प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में अच्छे कर्मों द्वारा जीवन के प्रत्येक पहलू पर अपना प्रभाव डालते हुए आगे बढ़ें। उन्होंने भगवान जांभोजी द्वारा प्रदत 29 नियमों की व्याख्या करते हुए प्रत्येक सदग्रस्त को अपने जीवन में 29 नियमों का पालन करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रातः जल्दी उठना चाहिए। जीवन की दिनचर्या के अनुसार प्रातः स्नान यज्ञ संध्या वंदन करने के बाद अपने कार्य की शुरुआत करें। जिससे आप कभी असफल नहीं होंगे। 

कार्यक्रम का संचालन करते हुए संस्कार शिविर के संयोजक विनोद जम्भदास ने कहा कि जाम्भाणी साहित्य अकादमी द्वारा द्वितीय ऑनलाइन जाम्भाणी संस्कार शिविर का आयोजन इस महामारी को देखते हुए बच्चों के जीवन उपयोगी बातें सिखाने के लिए जाम्भाणी साहित्य अकादमी द्वारा पांच दिवसीय ऑनलाइन संस्कार शिविर‌ का आयोजन किया जा रहा है। जो प्रतिदिन 4 से 6 बजे के मध्य आयोजित होगा। जिसमें 12 से 17 वर्ष के आयु वर्ग के बालक बालिका भाग ले रहे है। 

आज के इस प्रथम दिवस के संस्कार शिविर में 750 प्रतिभागियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन जाम्भाणी साहित्य अकादमी के प्रवक्ता विनोद जम्भदास, पंजाब ने किया।



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