Save Animals : कहानी घर - घर की, बेसहारा जानवरों की जिन्हें हम सड़कों पर दम तोड़ने को छोड़ रहे हैं.

 Save Animals : कहानी घर - घर की, बेसहारा जानवरों की जिन्हें हम सड़कों पर दम तोड़ने को छोड़ रहे हैं.

Save Animals : कहानी घर - घर की, बेसहारा जानवरों की जिन्हें हम सड़कों पर दम तोड़ने को छोड़ रहे हैं.


 एक समय था जब गाय व ऊंट के बिना जीवन अधूरा था. बदलते समय के साथ इंसान भी बदल गया, नहीं बदले तो वो है गाय और ऊंटनी.समय के इस बदलाव में मानव भौतिकतावादी हो गया. कहीं आने-जाने, भार ढ़ोने के काम ऊंटगाड़ी की बज़ाय अब मोटरसाइकिल, ट्रैक्टर, गाड़ी आदि से होने लगा है. वहीं ग्राम्य आंचल में भी दूधारु पशुओं के अतिरिक्त गाय के बछड़े, बुढ़ी गाय को अब दर-दर भटकने के लिए मजबूर कर दिया.

खेती अब यांत्रिक हो चली है. जब से ऊंट को राज्य पशु बनाया है इसका जीना दुभर हो चला है. मेलों में बिकना बंद हो गया, कीमत गिर गई. लोगों ने धीरे-धीरे ऊंट पालना ही कम कर दिया.


गाय, ऊंटनी से डर रही थी.  ऊंटनी हटने में असमर्थ थी. इसलिए दोनों एक दूसरे को निगाहों-निगाहों में समझने की कोशिश कर रही थी.


कोई इंसान भले ही इनका दर्द ना समझता हो पर ये एक-दूसरे का दर्द जरूर समझते होंगे. 

दोनों ओर हरी घास उगी थी. फिर भी सड़क के बीच-ओ-बीच खड़ी ऊंटनी जिसके भूख के मारे कुबड़ बैठे दिख रहे थे और निराश्रित गाय दोनों तरफ कंटिले तारों से घीरे एक-दूसरे को देख रहे थे. पांच किलोमीटर की लम्बी इस सड़क पर खड़ी गाय गुजरती गाड़ियों के होर्न से इधर-उधर होनें की जद्दोजहद कर रही थी. मनमुखी मानव को जल्दी इतनी की रूकने पर गाय को घास की जगह गालियां खिलाए जा रहे थे. यह रोड़ जो पिछले बरस दोनों ओर से कंटिले तारों के बोझ से आजाद थी पर देखा-देखी अपने ही छोड़े जानवरों से खुड़ की रक्षा के लिए कंटिले तारों की दीवार खींच दी.

सामने जो बूढी ऊंटनी देख रहे हैं वो अपने तीन पैरों पर खड़ी है क्योंकि एक दिन इसी तारबंदी की वजह से किसी कार ने टक्कर मार दी थी. टक्कर से पीछे का एक पांव टूट गया. वृद्धावस्था को प्राप्त ऊंटनी मालिक के लिए तो वैसे भी आजकल अनुपयोगी ही है. इसलिए इसे दर-दर भटकने को छोड़ दिया. कंटिले तारों के उस तरफ दिख रही घास की आश में एक पेर टुट गया.

खैर तभी एक ट्रक आया और इसे हटाने के लिए होर्न पर होर्न बजाये जा रहा था. ऊंटनी हट नही पा रही थी. तब मैंने ट्रक ड्राइवर से कहा भाई साहब ये तीन पांव पर चलने की कोशिश कर रही है इसका हटना मुश्किल है.  तब ट्रक ड्राइवर ऊंटनी के मालिक को भला-बुरा कहता नीचे उतरा और हम दोनों ने मिलकर उस थोड़ा सा सड़क के एक तरफ किया. बिना उपचार व पानी/चारे के दो दिन बाद ऊंटनी ने वहीं सड़क पर दम तोड़ दिया. अपनी लम्बी गर्दन से तारों के उपर से घास चरने की असफल कोशिश करती करती जिंदगी की जंग हार गयी. 


एक समय थार मरूस्थल में ऊंट और गाय के बिना जीवन बहुत मुश्किल होता था. आज ये दोनों ही उपेक्षा का इतनी शिकार हो चुकी है. जिससे बेसहारा सड़क नापते-नापते दम तोड़े जा रहे हैं. 


हमें खुद से ही एक पहल करनी चाहिए बेसहारा जानवरों को चारा-पानी की व्यवस्था करने की, आज पंचायतीराज चुनाव का आखिरी मतदान चरण है हम सब को मिलकर ग्राम पंचायत के चुने जाने वाले मुख्या/सरपंच से गोशाला खुलवाने का प्रयास करना चाहिए. 


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