जाम्भाणी पंथ परम्परा के पालन से स्वच्छ भारत का निर्माण संभव - खम्मूराम बिश्नोई

 

जाम्भाणी पंथ परम्परा के पालन से स्वच्छ भारत का निर्माण संभव - खम्मूराम बिश्नोई


खम्मूराम बिश्नोई



बिश्नोई न्यूज़ डेस्क बीकानेर। जाम्भाणी साहित्य अकादमी बीकानेर ने वैश्विक महामारी कोविड-19 से अस्त व्यस्त हुए मानव जीवन के मध्य साहित्य संवाद श्रृंखला के माध्यम से समाज के लोगों में जागृति लाने का प्रयास किया है। अकादमी अब तक 40 साहित्य संवाद श्रंखला सफलतापूर्वक आयोजित कर चुकी है। श्रंखला का 40 वां एपिसोड रविवार को आयोजित किया गया जिसमें बिश्नोई समाज के ख्यातनाम पर्यावरणविद खम्मूराम बिश्नोई मुख्य वक्ता थे।

खम्मूराम बिश्नोई ने जांभाणी साहित्य संवाद श्रृंखला में संबोधित करते हुए कहा कि हम सब प्रण लें कि हमारा भारत स्वच्छ, स्वस्थ और सुंदर बने। गंदगी हमारी संस्कृति नहीं है। हमारी संस्कृति तो पावन, पवित्र और स्वच्छता का संदेश आदिकाल से देती आ रही है।

उन्होंने कहा पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले विभिन्न कारकों में आज जो सबसे ख़तरनाक कारक जिसे मैं मानता हूँ वह है प्लास्टिक। जिसके अंधाधुंध प्रयोग, हिमालय के उतुंग शिखर से लेकर सागर की अनंत गहराई को आज इस प्लास्टिक ने भयंकर रूप से प्रदूषित किया है। प्लास्टिक को स्वाभाविक रूप से गलने में हजारों वर्ष लग जाते हैं। प्लास्टिक के अतिप्रयोग से हमारी धरती बंजर हो रही है, जल प्रदूषित होने के कारण जलीय जीवों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है साथ ही सड़कों पर बेसहारा घूमते गोवंश कचरे के साथ प्लास्टिक खा रही है। 

  हमारे तीर्थ, नदियां, तालाब, बावड़ी प्लास्टिक कचरे के कारण कितने प्रदूषित हो गए हैं, यह हम सब के लिए यह बड़े दुःख की बात है। 

सरकारों को निर्धारित मानक स्तर का उल्लंघन कर प्लास्टिक बेचने वालों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। प्लास्टिक के विकल्प के रूप में कपड़े,जूट आदि को बढ़ावा देना चाहिए। आमजन को भी अपने दैनंदिन जीवन में प्लास्टिक के प्रयोग से हरसंभव बचने का प्रयास करना चाहिए। 

  जाम्भोजी ने मानव के आंतरिक व बाह्य स्वच्छता को प्रेरित किया 

 गुरु जांभोजी की वाणी और 29 नियम में स्वच्छता की बात मुख्य रूप में मिलती है। कैसे पंथ के अनुयायीयों ने इसकी स्थापना के समय जब जल की अति दुर्लभता थी उस समय भी कोसों दूर से जल लाकर स्नान करने का नियम अंगीकार किया, इतनी मुश्किल से जल लाकर भी बिश्नोई माएं अपने और अपने दूधमुंहे बच्चे को स्नान कराए बिना दूध नहीं पिलाती थी। बिश्नोई आचार संहिता को मानने से स्वच्छ भारत का निर्माण किया जा सकता है। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान जयपुर के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ सत्यपाल बिश्नोई ने की। बिश्नोई ने वैज्ञानिक तथ्यों के आलोक में अपनी बात रखी। 

 कैसे एक आदमी पृथ्वी को प्लास्टिक मुक्त करने का संकल्प लेकर कचरा बीनते-बीनते अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पर्यावरण सम्मेलनों को संबोधित करने लगा। दुनिया उनकी बात को बड़े ध्यान से सुनती है, उनके कार्यों पर डाक्यूमेंट्री फिल्में बनती है। इतना ही नहीं विदेशी अखबारों में उनपर आर्टिकल लिखे जाते हैं। यह बहुत बड़ी बात है। आज श्री खम्मूराम हम सब के प्रेरणास्रोत है, हमें उनके कार्यों में कंधे-से-कंधा मिलाकर उनका सहयोग करना चाहिए ताकि प्लास्टिक मुक्त धरती का उनका सपना साकार हो सके। 

डॉ सत्यपाल बिश्नोई


अकादमी के सदस्य और समाजसेवी श्री रमेश बाबल दुबई ने सबका आभार प्रकट किया। संदीप धारणिया ने कार्यक्रम में तकनीकी संयोजक की भूमिका निभाई और संचालन विनोद जम्भदास बिश्नोई ने किया। इस संवाद श्रृंखला का लाइव प्रसारण अकादमी के विभिन्न सोशल मीडिया मंचों से किया गया जिसमें हजारों लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करावाई।



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