स्व. सतपाल बिश्नोई की 18 वीं पुण्यतिथि पर विशाल रक्तदान शिविर का आयोजन कल रोटरी कलब सार्दुलगंज बीकानेर में

सतपाल  : एक परिचय

स्व. सतपाल बिश्नोई की 18 वीं पुण्यतिथि पर विशाल रक्तदान शिविर का आयोजन कल रोटरी कलब सार्दुलगंज बीकानेर में

अठारह बरस पहले सतपाल इस दुनिया को विदा कह गए, एक सड़क दुघर्टना में संभाग के सबसे बड़े डायनामिक यूथ लीडर नहीं रहे।
सतपाल बिश्नोई सन 1976 में साधारण किसान परिवार में पैदा हुए। अपनी काबिलियत, मिलनसारिता, पढ़ने की मेधावी क्षमता के बूते पूरे संभाग में खुद की अनूठी पहचान कायम की।
साल 1995 में डूंगर महाविद्यालय में प्रवेश लेने से पूर्व फोर्ट स्कूल बीकानेर में पढ़ते हुए सतपाल ने छात्रों को संगठित किया, उनके इसी राजनीतिक कौशल और लोकप्रियता का परिणाम था कि जिंदगी की अंतिम सांस तक वो समूह सतपाल के साथ बना रहा।

वामपंथी विचारधारा के छात्र संगठन एसएफआई से सतपाल का जुड़ाव था।
सन 1996 में वो डूंगर महाविद्यालय के संयुक्त सचिव और कॉमन रूम सेक्रेट्री पद पर चुने गए इसके बाद सतपाल बिश्नोई ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
सन 1998 में लगातार दो साल से हार रहे छात्र संगठन को डूंगर कॉलेज में जीत दिलाकर छात्रसंघ अध्यक्ष बने और पश्चिमी राजस्थान की छात्र राजनीति में नए युग का सूत्रपात किया।
सतपाल का छात्रसंघ अध्यक्ष बनना जहां एक तरफ गांव देहात के विद्यार्थियों के वाजिब हकों की पैरवी थी, दूसरी ओर बीकानेर शहर के छात्र तबके से भी सतपाल का जुड़ाव जबरदस्त था।
1996 से सतपाल की आंखों ने एक जागता ख्वाब देखा कि बीकानेर में विश्वविद्यालय की स्थापना हो। संभाग के लाखों विद्यार्थी उस समय हर छोटे मोटे कार्य हेतु महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, अजमेर को जाते थे, सतपाल को यह खटकता था।
सतपाल को छात्र राजनीति का ककहरा सिखाने वाले एसएफआई के भंवर पूनिया 1997 के विश्वविद्यालय आंदोलन मेंअपने प्राणों की आहुति दे चुके थे।
सन् 1971 से बीकानेर में विश्वविद्यालय की मांग लंबित थी जिसको लेकर बीकानेर के तत्कालीन समय के छात्र नेता हरिराम चौधरी, आर के दास गुप्ता के नेतृत्व में लंबा आंदोलन चला था।
सतपाल के छात्रसंघ कार्यालय उद्घाटन (शपथ ग्रहण समारोह) में राजस्थान सरकार के तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री डॉक्टर जितेन्द्र सिंह एवं केबिनेट मंत्री डॉक्टर बी डी कल्ला उपस्थित थे, जिनके सामने भी सतपाल ने बीकानेर विश्वविद्यालय स्थापना की मांग मुखर होकर रखी।
सन् 2001 में सतपाल ने बीकानेर विश्वविद्यालय छात्र संघर्ष समिति का गठन किया और सभी छात्र संगठनों को एक जाजम पर लेकर आए, सतपाल ने बीकानेर संभाग के सभी महाविद्यालयों का दौरा किया और तमाम छात्रसंघ अध्यक्ष का सम्मेलन में बीकानेर में आहूत किया, सम्मेलन में सामूहिक रूप से संघर्ष का ऐलान किया गया। सतपाल को आंदोलन का मुख्य नेतृत्वकारी चुना गया।
सतपाल के नेतृत्व में संघर्ष समिति के बैनर तले सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात की गई। सतपाल के आंदोलन ने बीकानेर के संभाग के विद्यार्थियों को लामबंद किया, समूचा संभाग उस वक्त विश्वविद्यालय के लिए सतपाल की एक आवाज पर गुंजायमान हो चुका था। ये सब सतपाल की वजह से ही संभव हो पाया था ।
राजस्थान की सरकार ने आंदोलन की तीव्रता देखकर बीकानेर में विश्वविद्यालय की घोषणा की, यह सतपाल के लंबे संघर्ष का परिणाम था, 30 सालों से संघर्षरत बीकानेर संभाग के छात्रों की लंबी लड़ाई की जीत हुई। स्पष्ट रूप से परिलक्षित था कि सतपाल ने अपनी कुशल नेतृत्व क्षमता के बूते इस मुहिम को अपने ऐतिहासिक अंजाम तक पहुंचाया। एक समय ऐसा प्रतीत होता था कि सतपाल बिश्नोई की लोकप्रियता विधानसभा गए लोगों से कम नहीं थी।
सतपाल यहीं रुकने वाले नहीं थे उनका मानना था की बीकानेर में ऐसा विश्वविद्यालय स्थापित हो जिसमें शिक्षा सुलभ एवं सस्ती हो, किसानों के बेटे बेटियां पढ़कर आसानी से उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाए इसी दृष्टिकोण को लेकर वो आगे बढ़ रहे थे कि अचानक 12 जुलाई 2002 को सड़क दुर्घटना में सतपाल इस दुनिया से असमय रुखसत हो गए, सतपाल का होना हरेक विद्यार्थी को भरोसा दिलाता था कि कोई है जो उनके संकट एवं कष्ट में साथ देगा, हर छात्र हित की लड़ाई को लड़ेगा और संघर्ष की रणभेरी बजाने के लिए हमेशा मौजूद रहेगा लेकिन उनके जाने के बाद आज भी बीकानेर की युवा राजनीति में एक रिक्तता नजर आती है। उन जैसा कुशल वक्ता दूसरा कोई नजर नहीं आता,एक ऐसा ओजस्वी जो शब्दों से पानी में भी आग लगा दे।
सन् 2003 से लेकर 2006 तक लगातार सतपाल की स्मृति में उनके साथियों ने पीबीएम ब्लड बैंक के तत्वावधान में रक्तदान शिविर आयोजित किए। इसी क्रम में इस बार भी शिविर आयोजित किया जाएगा।


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