Meaning of Guru Purnima and Why is it Celebrated ?

गुरु-पूर्णिमा का त्यौहार ऋषि व्यास की स्मृति में मनाया जाता है। इसे व्यास-पूर्णिमा भी कहा जाता है। 
गुरु शब्द में 'गु' अंधकार (अज्ञान) का तथा 'रु' प्रकाश (ज्ञान) का बोधक है। अर्थात अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्मरूप प्रकाश है, वही गुरु है।
हिन्दू धर्म में गुरु से अभिप्राय एक आध्यात्मिक शिक्षक या निर्देशक है, जिसने आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि प्राप्त कर ली हो। भक्ति आंदोलन के समय कुछ सम्प्रदायों के संस्थापक, जिनको आध्यात्मिक सत्य का मूर्तिमान जीवित रूप मान कर उनके अनुयायियों ने उनमें गुरुश्रद्धा व्यक्त की, गुरु कहलाये गए। गुरु नानक, गुरु जम्भेश्वर आदि उसी काल में अवतरित हुए, जिन्होंने अपने आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि से कर्म, ज्ञान एवं भक्ति के आधार पर मानव मात्र को जीवन जीने का पवित्र एवं सुगम मार्ग बतलाया।
आज के युग की बोलचाल की भाषा में भारतवर्ष में सांसारिक अथवा पारमार्थिक ज्ञान देने वाले व्यक्ति को भी गुरु कहा जाता है। ऐसे गुरुओं को पांच श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है:।
1. शिक्षक - जो स्कूलों में शिक्षा देता है।
2. आचार्य - जो अपने आचरण से शिक्षा देता है।
3. कुलगुरु - जो वर्णाश्रम धर्म के अनुसार संस्कार ज्ञान देता है।
4. दीक्षा गुरु - जो परम्परा का अनुसरण करते हुए अपने गुरु के आदेश पर आध्यात्मिक उन्नति के लिए मंत्र दीक्षा देते हैं।
5. गुरु - वास्तव में यह शब्द समर्थ गुरु, परम गुरु अथवा पूर्ण ज्ञानी चेतन्य रूप पुरुष के लिए प्रयुक्त होता है तथा उसकी ही स्तुति भी की जाती है।
जाम्भाणी विचारधारा में उपरोक्त पांचवें प्रकार के गुरु को ही माना गया है, जो गुरु जम्भेश्वर ही हैं। उनके पश्चात जिन महापुरुष, सन्त महात्मा आदि पंथ को आगे बढ़ाने में योगदान किया या कर रहे हैं, वे केवल संदेशवाहक अथवा प्रचारक की श्रेणी में ही आते हैं।
आजकल के अधिकतर बिश्नोई साधु सन्यासियों की शिक्षा-दीक्षा, किसी जाम्भाणी-वैचारिक संस्था के अभाव में, वृहद् हिन्दू कर्मकांडी गंगा-यमुना संस्कृति (तहज़ीब) की शालाओं में होने के कारण दीक्षा-गुरु की पद्धति पर गुरु मानने का नवाचार आरम्भ हो गया है, भले ही आध्यात्मिक्ता के नाम पर केवल कुछ 'सबद' ही कंठस्थ हों। नवीन प्रवृतियों में कुछ साधुओं द्वारा अपने अपने शक्तिकेंद्र सुदृढ़ करने का अंतिम उद्देश्य स्वयं को आध्यात्मिक गुरु के तौर पर स्थापित करना ही है।
सुगरा-संस्कार में भी दीक्षा-मन्त्र सम्बंधित साधु द्वारा गुरूजी महाराज हेतु (on behalf of) केवल उच्चारित किया जाता है, ना कि स्वयं गुरु-सामर्थ्य की क्षमता में दिया जाता है। अतः मेरे विचार में बिश्नोइजन हेतु केवल गुरु जम्भेश्वर ही गुरु के तौर पर पूजनीय है, अन्य कोई नहीं।

साभार : श्री वेदप्रकाश जी गोदारा

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