वन्य जीवों की रक्षार्थ अमर शहीद बीरबलराम खीचड़ की शहादत दिवस पर शत् शत् नमन

 वन्य जीवों की रक्षार्थ अमर शहीद बीरबलराम खीचड़ की शहादत दिवस पर शत् शत् नमन

वन्य जीवों की रक्षार्थ अमर शहीद बीरबलराम खीचड़ की शहादत दिवस पर शत् शत् नमन


अमर शहीद बीरबल का जन्म 15 जनवरी 1940 में गांव लोहावट, तहसील फलौदी, जिला जोधपुर राजस्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री बिड्दाराम खीचड एवं माता का नाम श्रीमती लाछां जांगु था। आपने प्राथमिक स्तर तक शिक्षा ग्रहण की। बचपन में ही आपकी रुचि विश्नोई धर्म में गहन थी।

आपकी माताजी आपको उन विश्नोई विरों की कहानियां सुनाया करती थी, जिन्होंने वन्य जीवों पर दया करना एवं उनकी रक्षा करना भी है। आज के समय में वन्य जींवो की रक्षार्थ अपनी कुर्बानियां दी थी। इससे आपके मन में उन वीरों के प्रति बडी क्षद्धा थी।

श्री गुरु जम्भेश्वर जी द्वारा बताये गये उनतीस नियमों में से एक प्रमुख नियम वन्य जीवों पर दया करना एवं उनकी रक्षा करना भी है। आज के समय में वन्य जीवों की रक्षार्थ बलिदान होने वालों में अमर शहीद बीरबल अग्रगण्य है। उनके बलिदान की घटना इस प्रकार है:-


वि. सं. 2034 मिंगसर सुदी सातम, शनिवार को बीरबल ईश्वर के ध्यान में बैठे हुए थे। इतने में ही बंदुक का खडका हुआ। बीरबल अपनी माला बीच में ही छोड्कर खड्के की ओर दौड पडे। जब वह अपने खेत की कांकड पर पहुंचे तो वहां उन्होंने देखा, एक घायल हरिण तड्फ रहा है।

पास में ही शिकारी खडे थे। बीरबल ने उन शिकारियों से हरिण लेना चाहा। क्रुर शिकारियों ने उन्हे भी गोली मार दी। ईस प्रकार वह अनोखा वीर 17 दिसंबर,1977 को शहीद हो गया। उस समय उनकी उम्र 37 वर्ष की थी।

शहीद बीरबल अपने पिछे पत्नी, तीन पुत्रियां तथा एक पुत्र छोड गये थे। शहीद बीरबल खिचड़ एवं हरिण के हत्यारे को माननिय न्यायाधीश श्री राजेन्द्र सक्सेना द्वारा आजीवन कारावास व उसके सहयोगी को एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा एवं जुर्माना सुनाया गया। हर वर्ष, शहीद की पुन्य तिथी पर एक शहीदी मेला लगता है। आज शहीद के समाधी-स्थल पर एक स्मारक बना हुआ है। धन्य है वह माता, जिसने ऐसे अमर शहीद को जन्म दिया।

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